विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाई जाती है? महत्व, कथाएँ और परंपराएँ

विश्वकर्मा पूजा कारीगरों, इंजीनियरों और मजदूरों का खास त्योहार है। यह दिन देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है, जिन्होंने स्वर्ग, द्वारका, लंका और दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया। जानिए इसकी पौराणिक कथाएँ, महत्व और परंपराएँ।

विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाई जाती है? महत्व, कथाएँ और परंपराएँ

विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाई जाती है?

भारत त्योहारों की भूमि है। यहाँ हर त्योहार किसी न किसी परंपरा, देवता या लोककथा से जुड़ा हुआ है। इन्हीं में से एक है विश्वकर्मा पूजा, जिसे खास तौर पर कारीगरों, इंजीनियरों, मजदूरों और तकनीकी पेशों से जुड़े लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह दिन समर्पित है देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा को, जिन्हें सृष्टि का पहला वास्तुकार और यंत्रों का जनक माना जाता है।

यह त्योहार केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि सामाजिक और व्यावसायिक जीवन में भी इसका विशेष महत्व है। आइए जानते हैं कि आखिर विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाई जाती है और इसके पीछे कौन-कौन सी प्राचीन कथाएँ जुड़ी हुई हैं।


भगवान विश्वकर्मा कौन हैं?

हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा को देवताओं के शिल्पकार और ब्रह्मांड के दिव्य इंजीनियर कहा गया है। वे भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं और अद्भुत कला, स्थापत्य और यांत्रिक ज्ञान से संपन्न थे।

उनकी रचनाओं में शामिल हैं:

  • स्वर्ग लोक – इंद्र का दिव्य लोक, जिसमें सोने के महल और बाग़-बगीचे थे।

  • लंका – सोने की नगरी, जिसे उन्होंने भगवान शिव के लिए बनाया था और बाद में रावण को मिली।

  • द्वारका – समुद्र में स्थित भगवान कृष्ण की नगरी।

  • इंद्रप्रस्थ – महाभारत काल में पांडवों की राजधानी।

  • दिव्य अस्त्र-शस्त्र – शिव का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र और इंद्र का वज्र भी इन्हीं की कृतियाँ हैं।

इसी कारण वे सभी कारीगरों, इंजीनियरों, मजदूरों और शिल्पकारों के आराध्य देव माने जाते हैं।


विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी प्राचीन कथाएँ

1. स्वर्ग और लंका का निर्माण

कहा जाता है कि जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रची तो इंद्रलोक और अन्य दिव्य नगरों को बनाने का कार्य विश्वकर्मा को सौंपा। उन्होंने स्वर्ग को इतना भव्य बनाया कि उसकी तुलना किसी और लोक से नहीं की जा सकती।
इसी तरह भगवान शिव के आदेश पर उन्होंने सोने की नगरी लंका बनाई थी, जिसे बाद में शिव ने रावण को दान कर दिया।

2. द्वारका और इंद्रप्रस्थ

जब भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़कर समुद्र किनारे नई नगरी बसाने की ठानी, तो विश्वकर्मा ने समुद्र देव से अनुमति लेकर समुद्र में ही द्वारका का निर्माण किया। यह नगरी इतनी सुदृढ़ और सुंदर थी कि आज भी उसके खंडहर समुद्र में पाए जाते हैं।
महाभारत काल में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ भी विश्वकर्मा की ही देन थी। उसका सभा भवन – मायासभा – इतना अद्भुत था कि दुर्योधन उसमें भ्रमित होकर पानी और जमीन में अंतर न कर सका और उपहास का पात्र बन गया।

3. अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण

देवताओं के कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए। इनमें भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, भगवान शिव का त्रिशूल और इंद्र का वज्र प्रमुख हैं। कथा है कि सूर्य की प्रचंड आभा से निकली ऊर्जा को विश्वकर्मा ने ढालकर इन्हीं अस्त्रों में रूपांतरित किया।

4. समुद्र मंथन

समुद्र मंथन की प्रसिद्ध कथा में देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत पाने के लिए मंदराचल पर्वत को मंथनदंड और वासुकि नाग को रस्सी बनाया। माना जाता है कि इस पूरी प्रक्रिया के लिए आवश्यक यांत्रिक साधन और व्यवस्था विश्वकर्मा ने ही बनाई थी।


विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाई जाती है?

  1. भगवान विश्वकर्मा का सम्मान करने के लिए – वे सृष्टि के पहले इंजीनियर और शिल्पकार माने जाते हैं।

  2. औज़ारों और मशीनों के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए – जैसे किसान फसल का उत्सव मनाते हैं, वैसे ही कामगार अपने उपकरणों को पूजते हैं।

  3. काम की सुरक्षा और समृद्धि की प्रार्थना के लिए – विशेषकर कारखानों और कार्यस्थलों में।

  4. कौशल और रचनात्मकता का उत्सव मनाने के लिए – यह दिन कारीगरों और तकनीकी विशेषज्ञों को गर्व और प्रेरणा देता है।

  5. सामुदायिक एकता के लिए – इस दिन मालिक और कर्मचारी साथ बैठकर पूजा और भोजन करते हैं।


विश्वकर्मा पूजा कब मनाई जाती है?

यह पर्व कन्या संक्रांति को मनाया जाता है, यानी जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। सामान्यत: यह तिथि 17 या 18 सितंबर पड़ती है।
पूर्वी भारत (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, बिहार, झारखंड) में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारत के कई हिस्सों में दीवाली के दिन भी विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है।


पूजा की परंपराएँ

  • कारखानों, दुकानों और दफ्तरों में औज़ारों व मशीनों की सफाई और सजावट की जाती है।

  • भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है।

  • इस दिन मशीनें चलाना शुभ नहीं माना जाता, इसलिए अधिकांश स्थानों पर कार्य बंद रहता है।

  • सामूहिक भोज, प्रसाद और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

  • पूर्वी भारत के कई राज्यों में इस दिन पतंगबाज़ी की भी परंपरा है।


आधुनिक समय में महत्व

आज के औद्योगिक और तकनीकी युग में विश्वकर्मा पूजा और भी प्रासंगिक हो गई है। इंजीनियर, आर्किटेक्ट, आईटी प्रोफेशनल, मैकेनिक और मजदूर सभी इसे मनाते हैं। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि “कर्म ही पूजा है” और हर काम, चाहे छोटा हो या बड़ा, समाज की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


निष्कर्ष

विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह कौशल, मेहनत और कृतज्ञता का उत्सव है। प्राचीन कथाएँ हमें बताती हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने दिव्य लोकों, नगरों और अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण कर देवताओं और मानव सभ्यता दोनों को समृद्ध किया।

आज भी यह पूजा हमें यह सिखाती है कि अपने औज़ारों और कार्यस्थलों का सम्मान करें, काम को पूजा समझें और सामूहिक एकता व सहयोग की भावना को जीवित रखें।
इसीलिए हर साल विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है – ताकि हम भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से जीवन में सुरक्षा, समृद्धि और रचनात्मकता प्राप्त कर सकें।

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