नवरात्रि का नौवाँ दिन: माँ सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व, कथा और उपासना विधि

नवरात्रि के नौवें दिन माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विशेष महत्व है। जानें उनकी कथा, स्वरूप, पूजा विधि, कन्या पूजन का महत्व और भक्तों को मिलने वाले लाभ।

नवरात्रि का नौवाँ दिन: माँ सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व, कथा और उपासना विधि

माँ सिद्धिदात्री: नवरात्रि के नौवें दिन की आराधना और महत्व

भारत की संस्कृति में नवरात्रि का पर्व अत्यंत पावन और शक्तिशाली माना जाता है। नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। प्रत्येक दिन माँ का अलग-अलग रूप पूजनीय होता है। नवरात्रि का नौवाँ दिन माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री को समर्पित होता है।

इनका नाम ही दर्शाता है – “सिद्धि” अर्थात अलौकिक शक्तियाँ और “दात्री” यानी देने वाली। माँ सिद्धिदात्री वह देवी हैं जो भक्तों को सभी सिद्धियाँ और शक्तियाँ प्रदान करती हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के अंतिम दिन इनकी पूजा का विशेष महत्व है।


माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप

माँ सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत मनोहर और दिव्य है। इनके चार हाथ हैं –

  • एक हाथ में चक्र

  • दूसरे हाथ में गदा

  • तीसरे हाथ में शंख

  • चौथे हाथ में कमल

वे कमल पर विराजमान रहती हैं और सिंह या कमलासन पर बैठी दिखाई जाती हैं। माँ के मुख पर सदैव करुणा और शांति की छवि झलकती है।


माँ सिद्धिदात्री की कथा

पुराणों में वर्णन है कि जब ब्रह्मांड की रचना प्रारंभ हुई, तब भगवान शिव ने सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा की कठोर तपस्या की। माँ सिद्धिदात्री ने प्रसन्न होकर शिव को अष्ट सिद्धियाँ प्रदान कीं। इन्हीं सिद्धियों की शक्ति से शिव ‘अर्धनारीश्वर’ कहलाए।

माँ सिद्धिदात्री की यह कथा हमें सिखाती है कि दिव्यता और सिद्धियाँ केवल भक्ति और साधना से ही प्राप्त की जा सकती हैं।


नवरात्रि के नौवें दिन का महत्व

नौवाँ दिन नवरात्रि का समापन दिवस होता है। इस दिन की पूजा से साधक को न केवल आध्यात्मिक बल मिलता है बल्कि जीवन में असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

इस दिन की पूजा से:

  • सभी प्रकार की सिद्धियाँ और शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

  • जीवन की समस्याएँ दूर होती हैं।

  • साधक को ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति होती है।

  • परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।


माँ सिद्धिदात्री की उपासना विधि

इस दिन की पूजा अत्यंत सरल और फलदायी है।

  1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  2. पूजा स्थल को शुद्ध कर माँ सिद्धिदात्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

  3. माँ को लाल या गुलाबी फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित करें।

  4. धैर्यपूर्वक निम्न मंत्र का जाप करें:

    "ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥"

  5. अंत में आरती करें और प्रसाद बाँटें।

  6. इस दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। छोटी कन्याओं को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।


माँ सिद्धिदात्री की कृपा से मिलने वाली सिद्धियाँ

शास्त्रों में वर्णित है कि माँ सिद्धिदात्री की कृपा से भक्त को आठ मुख्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं:

  1. अणिमा सिद्धि – स्वयं को अति सूक्ष्म बना लेना।

  2. महिमा सिद्धि – स्वयं को असीमित रूप में विस्तारित कर लेना।

  3. गरिमा सिद्धि – स्वयं को अत्यधिक भारी बना लेना।

  4. लघिमा सिद्धि – स्वयं को हल्का बना लेना।

  5. प्राप्ति सिद्धि – इच्छित वस्तु को प्राप्त कर लेना।

  6. प्राकाम्य सिद्धि – मनचाही इच्छा को पूरा कर लेना।

  7. ईशित्व सिद्धि – समस्त सृष्टि पर नियंत्रण।

  8. वशित्व सिद्धि – सबको वश में करने की शक्ति।

हालाँकि इन सिद्धियों का महत्व साधना और भक्ति में है, सामान्य भक्त के लिए माँ सिद्धिदात्री की पूजा से मानसिक शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक जागरण की प्राप्ति होती है।


कन्या पूजन का महत्व

नवमी तिथि पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि छोटी कन्याओं में माँ दुर्गा का वास होता है। इस दिन नौ कन्याओं को आमंत्रित कर उनके चरण धोए जाते हैं, उन्हें भोजन और उपहार दिए जाते हैं। यह पूजा माँ सिद्धिदात्री को अति प्रिय है और इससे भक्त को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।


आध्यात्मिक दृष्टि से माँ सिद्धिदात्री

माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप केवल धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी है। वे हमें सिखाती हैं कि भक्ति और ध्यान से मनुष्य असंभव को भी संभव बना सकता है। उनकी उपासना से जीवन में आत्मज्ञान, वैराग्य और मोक्ष की राह सरल हो जाती है।


निष्कर्ष

नवरात्रि का नौवाँ दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा और साधना का दिन है। वे भक्तों को सिद्धियाँ प्रदान कर जीवन को सफल और सार्थक बनाती हैं। उनकी कृपा से भक्त के जीवन से सभी दुख दूर होकर सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

 जय माँ सिद्धिदात्री! 

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